
भारत में जातिगत जनगणना का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है और केंद्र सरकार ने इसे आगामी जनगणना में शामिल करने का निर्णय लिया है। जातिगत जनगणना का अर्थ है देश की सभी जातियों और उपजातियों की विस्तृत गिनती करना, जिसमें उनकी संख्या के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा का स्तर, रोजगार, आय और जीवन स्तर जैसी जानकारी भी शामिल होती है।
आजादी के बाद से अब तक भारत में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की ही गिनती की जाती रही है। पूर्ण जातिगत जनगणना आखिरी बार ब्रिटिश शासन के दौरान 1931 में हुई थी, जिसमें 4,147 जातियों को गिना गया था और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की आबादी 52% बताई गई थी। 2011 में भी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) हुई थी, लेकिन उसके जातिगत आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। लगभग 94 साल बाद अब फिर से पूरी जातिगत जनगणना की तैयारी हो रही है, जो संभावित रूप से 2026-2027 में हो सकती है।
जातिगत जनगणना की आवश्यकता और फायदे:
- यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और समाज के कमजोर वर्गों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुँचाने के लिए आवश्यक है।
- इससे OBC, SC, ST और अन्य जातियों की सही संख्या और उनकी वास्तविक स्थिति का पता चलेगा, जिससे आरक्षण नीतियों में सुधार और उन्हें अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा।
- सटीक डेटा के आधार पर शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और आर्थिक सहायता से जुड़ी नीतियां बेहतर ढंग से बनाई और लक्षित की जा सकेंगी।
- यह समाज में समानता लाने और सभी वर्गों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
संभावित नुकसान और चुनौतियाँ:
- कुछ लोगों का मानना है कि इससे समाज में जातिवाद और भेदभाव को बढ़ावा मिल सकता है।
- राजनीतिक दल जातिगत आंकड़ों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
- भारत में हजारों जातियों और उपजातियों की पहचान और सटीक गिनती करना एक बड़ी चुनौती है।
- लोगों द्वारा सही जानकारी न देना या गलत जानकारी देना भी आंकड़ों की सटीकता को प्रभावित कर सकता है।
प्रक्रिया और भविष्य:
जातिगत जनगणना को डिजिटल माध्यम से किए जाने की संभावना है, जिसमें सरकार द्वारा नियुक्त टीमें घर-घर जाकर जानकारी इकट्ठा करेंगी। एकत्रित डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित की जाएगी और फिर इसे सार्वजनिक किया जाएगा ताकि नीतियां बनाई जा सकें। यह जनगणना भविष्य में नई आरक्षण नीतियों और कमजोर वर्गों के लिए नई योजनाओं का आधार बन सकती है, जिससे समाज में समानता और सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकते हैं।
निष्कर्ष:
जातिगत जनगणना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण और बड़ा कदम है। यदि इसे सही तरीके से और पारदर्शिता के साथ संचालित किया जाता है, तो यह समाज के हर वर्ग की स्थिति को समझने, भेदभाव को कम करने और सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। हालांकि, इससे जुड़ी चुनौतियों और संभावित राजनीतिक उपयोग को ध्यान में रखना भी आवश्यक है।