
भारत में संपत्ति के अधिकार और विरासत के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं। नए कानून 2025 के अनुसार, माता-पिता की स्वयं अर्जित संपत्ति पर बच्चों का कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा। यह नियम माता-पिता को अपनी कमाई हुई संपत्ति के संबंध में पूर्ण स्वतंत्रता देता है कि वे इसे अपनी इच्छानुसार किसी को भी दे सकें।
भारत में संपत्ति विरासत के नियम विभिन्न कानूनों पर आधारित हैं, जिनमें हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 प्रमुख हैं। संपत्ति को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जाता है: स्वयं अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति।
स्वयं अर्जित संपत्ति
यह वह संपत्ति है जिसे व्यक्ति ने अपने प्रयासों से कमाया है। नए कानून 2025 के तहत, व्यक्ति अपनी स्वयं अर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी (चाहे वह बेटा हो या बेटी) दे सकता है। बच्चों का इस संपत्ति पर कोई स्वतः कानूनी अधिकार नहीं होता है।
पैतृक संपत्ति
यह वह संपत्ति है जो पुरुष पूर्वजों से विरासत में मिली होती है। पैतृक संपत्ति के मामले में, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के अनुसार, बेटे और बेटियों दोनों को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह संशोधन पैतृक संपत्ति के बंटवारे में लैंगिक समानता सुनिश्चित करता है।
वसीयत का महत्व
संपत्ति का बंटवारा अक्सर वसीयत (विल) के अनुसार होता है। यदि कोई वैध वसीयत मौजूद है, तो संपत्ति का विभाजन उसी के प्रावधानों के तहत किया जाता है। वसीयत न होने की स्थिति में, संपत्ति का वितरण लागू कानूनी उत्तराधिकार नियमों के अनुसार होता है।
विवादों का समाधान
संपत्ति विरासत से संबंधित विवादों से बचने और उनका समाधान करने के लिए, परिवार के सदस्यों के बीच खुली चर्चा और कानूनी सलाह लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक स्पष्ट वसीयत तैयार करना भी भविष्य में होने वाले भ्रम और विवादों को रोकने में मदद करता है।
निष्कर्ष
नए कानून 2025 का मुख्य उद्देश्य माता-पिता को उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति पर पूर्ण अधिकार देना है, जबकि पैतृक संपत्ति में बेटे और बेटियों के समान अधिकार बरकरार रहेंगे। यह कानून माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करता है और विरासत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है।
अस्वीकरण
यह सारांश सामान्य जानकारी प्रदान करता है और इसे कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। संपत्ति विरासत से संबंधित किसी भी विशिष्ट निर्णय से पहले हमेशा किसी कानूनी विशेषज्ञ से परामर्श करें।